एक भिखारी बेहद स्वस्थ और हट्टा-कट्टा था। फिर भी उसे भीख मांगना ही अच्छा लगता था। रोज सुबह वह सड़क के किनारे बैठ जाता और भीख मांगने लगता। कोई उसे पचास पैसे देता, कोई एक रुपया तो कोई दो रुपये।
एक सेठ प्रतिदिन उस भिखारी को देखता और हंसकर आगे बढ़ जाता। भिखारी हैरान होता कि रोज वह सेठ उसे देखकर हंसता क्यों है? एक दिन उस भिखारी ने सेठ को रोककर इसका कारण पूछ ही लिया।
सेठ बोला, "इसका जवाब मैं तुम्हें अपनी दुकान पर दूंगा। शाम को मेरी दुकान पर आ जाना।"
भिखारी को भी कारण जानने की उत्सुकता थी, अतः शाम होते-होते वह उस सेठ की दुकान पर पहुंच गया। सेठ ने उसे कुर्सी पर बैठाया और उसके लिए चाय-नाश्ता मंगवाया।
जब भिखारी चाय-नाश्ता कर चुका तो सेठ ने अपनी तिजोरी में से दस हजार रुपये निकालकर उसके सामने रख दिए और कहा, "मुझे तुम्हारी एक आंख चाहिए, कीमत मैं दे रहा हूं।"
सेठ की बात सुनकर भिखारी हैरान रह गया और बोला, "आप भी कमाल करते हैं सेठजी, भला आंख भी कोई बेचता है क्या?"
“चलो आंख मत दो, अपनी एक टांग मुझे दे दो। मैं तुम्हें दस हजार और देता हूं।" सेठ ने और दस हजार रुपये उसके सामने रखते हुए कहा। |
"पर सेठजी, टांग भी तो नहीं बेची जा सकती। यह आप कैसी बातें कर रहे हैं?" भिखारी ने परेशान होकर कहा।
इस पर सेठ ने दस हजार रुपये उसके आगे और रखे तथा कहा, "ठीक है, अब तुम्हारे पास तीस हजार रुपये हो गए हैं। तुम मुझे अपना एक हाथ दे दो।"
"सेठजी, भला शरीर का अंग भी कहीं बिकाऊ होता है, शरीर तो अनमोल है।" भिखारी ने कहा।
सेठ ने कहा, “जब तुम्हारे पास इतने अनमोल रत्न हैं तो फिर तुम भीख क्यों मांगते हो? जानते हो मैं तुम्हें देखकर क्यों हंसता था? हाथ, पैर और आंखे होने पर भी जब तुम भीख मांगते थे तो मुझे तुम पर हंसी आती थी।"
सेठ की बात सुनकर भिखारी शर्मिंदा हो गया। उसने तय कर लिया कि अब वह कभी भीख नहीं मांगेगा और मेहनत-मजदूरी करके अपना पेट भरेगा।
कथा-सार
भीख मांगना अभिशाप है-इससे भीख मांगने वाले का आत्मसम्मान तो मरता ही है-देश के गौरव पर भी बट्टा लगता है। सही-सलामत शरीर वाले भिखारी को सेठ ने जब उसके शरीर का महत्व समझाया तो उसकी अंतर्चेतना जाग्रत हुई। दो हाथ-पैर व आंखें जिसके पास हों उसे किसी से कुछ मांगने की क्या तुक है!