लालच (lalach) (Moral Story in Hindi)
माधो बेहद निर्धन था।
एक रात उसने सपने में देखा कि उसने अपने मित्र मोती से सौ रुपये उधार लिए हैं।
अगले दिन उसने मोती को अपने स्वप्न के बारे में बताया |
माधो की बात सुनकर मोती के मन में सौ रुपये हडपने का विचार पनपने लगा, अतः उसने इस बात को कुछ इस तरह प्रचारित किया मानो सचमुच माधो ने उससे सौ रुपये उधार लिए हों।
इस तरह जल्दी ही यह बात फैल गई कि माधो ने अपने मित्र मोती से सौ रुपये उधार लिए हैं। अब मोती ने उचित मौका जानकर माधो के पास जाकर अपने सौ रुपये मांगे।
माधो तो वैसे ही हालात का मारा था। उसके लिए सौ रुपये एक वर्ष में भी जुटा पाना संभव नहीं था। वह मोती से बोला, "लेकिन वह तो स्वप्न की बात थी।"
"में कुछ नहीं जानता, मुझे मेरे सौ रुपये चाहिए। तुम सीधी तरह मेरे रूपये दे दो, वरना मैं राजा से तुम्हारी शिकायत करूगा, मर पास गवाह भी मौजूद है | "
माधो के पास मोती को देने के लिए रुपये थे ही नहीं, इसलिए बात राजा तक पहुंच गई। राजा ने दोनों पक्षों की बात सुनी। फिर कुछ सोचने के बाद उन्होने मंत्री से कहकर खजाने से सौ रुपये और एक दर्पण मंगवाया।
दोनों चीजें आने के बाद राजा ने सौ रुपये कुछ इस तरह रखे कि उसका प्रतिबिंब दर्पण में दिखाई दे। इसके बाद उन्होंने मोती से कहा, "दर्पण में दिख रहे सौ रूपये उठा लो।"
"महाराज! दर्पण में दिखने वाले रुपये कैसे उठाए जा सकते हैं?” मोती ने आश्चर्य से पूछा। "क्यों नहीं उठाए जा सकते?" राजा ने कठोर स्वर में पूछा। "
महाराज! दर्पण में दिखने वाले रुपये तो परछाई मात्र हैं।" "तो स्वप्न क्या होता है? जब तुम स्वप्न में दिए गए रुपये की मांग कर सकते हो तो दर्पण में दिखने वाले रुपये क्यों नहीं उठा सकते?” राजा ने कहा।
मोती को अहसास हो गया कि उसकी चालाकी पकड़ी गई है। उसने माफी मांगी। राजा ने उस पर सौ रुपये का जुर्माना किया और उसे माधो को देने की आज्ञा दी।
माधो की बात सुनकर मोती के मन में सौ रुपये हडपने का विचार पनपने लगा, अतः उसने इस बात को कुछ इस तरह प्रचारित किया मानो सचमुच माधो ने उससे सौ रुपये उधार लिए हों।
इस तरह जल्दी ही यह बात फैल गई कि माधो ने अपने मित्र मोती से सौ रुपये उधार लिए हैं। अब मोती ने उचित मौका जानकर माधो के पास जाकर अपने सौ रुपये मांगे।
माधो तो वैसे ही हालात का मारा था। उसके लिए सौ रुपये एक वर्ष में भी जुटा पाना संभव नहीं था। वह मोती से बोला, "लेकिन वह तो स्वप्न की बात थी।"
"में कुछ नहीं जानता, मुझे मेरे सौ रुपये चाहिए। तुम सीधी तरह मेरे रूपये दे दो, वरना मैं राजा से तुम्हारी शिकायत करूगा, मर पास गवाह भी मौजूद है | "
माधो के पास मोती को देने के लिए रुपये थे ही नहीं, इसलिए बात राजा तक पहुंच गई। राजा ने दोनों पक्षों की बात सुनी। फिर कुछ सोचने के बाद उन्होने मंत्री से कहकर खजाने से सौ रुपये और एक दर्पण मंगवाया।
दोनों चीजें आने के बाद राजा ने सौ रुपये कुछ इस तरह रखे कि उसका प्रतिबिंब दर्पण में दिखाई दे। इसके बाद उन्होंने मोती से कहा, "दर्पण में दिख रहे सौ रूपये उठा लो।"
"महाराज! दर्पण में दिखने वाले रुपये कैसे उठाए जा सकते हैं?” मोती ने आश्चर्य से पूछा। "क्यों नहीं उठाए जा सकते?" राजा ने कठोर स्वर में पूछा। "
महाराज! दर्पण में दिखने वाले रुपये तो परछाई मात्र हैं।" "तो स्वप्न क्या होता है? जब तुम स्वप्न में दिए गए रुपये की मांग कर सकते हो तो दर्पण में दिखने वाले रुपये क्यों नहीं उठा सकते?” राजा ने कहा।
मोती को अहसास हो गया कि उसकी चालाकी पकड़ी गई है। उसने माफी मांगी। राजा ने उस पर सौ रुपये का जुर्माना किया और उसे माधो को देने की आज्ञा दी।